“लकी ड्रॉ से दया का सबक: कैसे बच्चों ने नेहा की पीड़ा को समझा”
"दिल से दया: नेहा की कहानी और बच्चों की संवेदनशीलता"

“बच्चों की दया का पाठ: नेहा और उसके जूते की प्रेरणादायक कहानी”
स्कूल में शिक्षिका ने परीक्षा में प्रथम आने वाले बच्चों को पुरस्कार देने का वादा किया और कहा जो भी प्रथम आएगा उसको नए जूते मिलेंगे। परीक्षा हुई और बहुत से बच्चे प्रथम आए ! अब जूते की एक जोड़ी सभी बच्चों को देना मुश्किल था, तो शिक्षिका ने कहा, “लकी ड्रॉ निकालते हैं, जिसका भी नाम आएगा, जूते उसके हो जाएंगे।”
लकी ड्रॉ के लिए सभी प्रथम आए बच्चों के नाम डाले गए। नेहा नामक एक लड़की का नंबर लग गया और उसे अपना पुरस्कार प्राप्त हुआ। नेहा पुराने फटे हुए कपड़ों और जूतों से थक चुकी थी। उसके पिता का साया उठ गया था और उसकी मां बेबसी में जी रही थी। इसलिए जूते का यह उपहार उसके लिए बहुत मायने रखता था।
शिक्षिका घर गई और रोते हुए अपने पति को सारी कहानी सुनाई। पति खुश हुआ और रोने का कारण पूछा। शिक्षिका रोते हुए कहने लगी, “मुझे रोना दूसरे बच्चों की भावनाओं और अपनी लापरवाही पर आ रहा है। जब मैंने दूसरे सारे चिट्स देखे, तो उस पर एक ही नाम लिखा हुआ था – नेहा। उन मासूम बच्चों ने नेहा की पीड़ा और बेबसी को दिल से महसूस किया।”
बच्चों के अंदर सबसे अच्छा प्रशिक्षण अच्छे भावना पैदा करना और दया करना है। माता-पिता को चाहिए कि जब भी वे दान पुण्य करें तो बच्चों को अपने साथ जरूर रखें। यह बच्चों के हाथों से ही दान पुण्य कराएं। इससे बच्चों में बचपन से ही उदारता का गुण तथा अच्छी भावना का निर्माण होता है!